मानसिक स्वास्थ्य आज के दौर में सबसे जरूरी मुद्दों में से एक बन चुका है। दुनिया भर में लाखों लोग किसी न किसी मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। हालांकि, हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जो भ्रांतियां और गलतफहमियां फैली हैं, वे इस समस्या को और गहरा बना देती हैं। मानसिक बीमारी को अक्सर कमजोरी, पागलपन या सामाजिक कलंक समझा जाता है। इस लेख में हम भारतीय समाज में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर मौजूद इन गलतफहमियों पर चर्चा करेंगे और उनका सच बताएंगे।

मानसिक स्वास्थ्य क्या है?
लोग अक्सर मानसिक स्वास्थ्य को पागलपन या किसी विक्षिप्त स्थिति से जोड़ लेते हैं। जबकि, मानसिक स्वास्थ्य का मतलब है —
- अपने विचारों और भावनाओं को ठीक से समझना।
- रोजमर्रा की चुनौतियों का सामना संतुलित तरीके से करना।
- रिश्तों को बेहतर तरीके से निभाना।
- जीवन के उतार-चढ़ाव में खुद को संभालना।
मानसिक स्वास्थ्य उतना ही महत्वपूर्ण है जितना शारीरिक स्वास्थ्य।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर प्रमुख भ्रांतियां
1. “ये तो पागल है।”
भारत में किसी भी मानसिक समस्या वाले व्यक्ति को पागल कहकर मजाक बनाया जाता है। डिप्रेशन, एंग्जायटी, बायपोलर डिसऑर्डर जैसी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता। जबकि ये सभी चिकित्सा से ठीक की जा सकने वाली मानसिक स्थितियां हैं।
2. “मजबूत लोग मानसिक बीमारी से नहीं जूझते।”
कई लोग मानते हैं कि मानसिक बीमारी सिर्फ कमजोर लोगों को होती है। जबकि, कोई भी — चाहे वो कितना भी मानसिक रूप से मजबूत क्यों न हो — मानसिक बीमारी का शिकार हो सकता है।
3. “भूत-प्रेत का साया है।”
ग्रामीण इलाकों और कई शहरों में मानसिक बीमारी को अभी भी किसी आत्मा या बुरी नजर का असर मान लिया जाता है। कई मामलों में मरीज को झाड़-फूंक और तांत्रिकों के पास ले जाया जाता है। इससे मरीज की स्थिति और खराब हो जाती है।
4. “डिप्रेशन मतलब सिर्फ दुखी रहना।”
अधिकांश लोग डिप्रेशन को सिर्फ उदासी समझते हैं। जबकि डिप्रेशन में व्यक्ति को न केवल मनोवैज्ञानिक बल्कि शारीरिक लक्षण भी होते हैं — जैसे नींद न आना, भूख कम लगना, ऊर्जा की कमी, आत्महत्या के विचार आदि।
5. “दवा खाने से आदत पड़ जाती है।”
मानसिक बीमारियों की दवाओं को लेकर भी भ्रांति है कि इन्हें लेने से आदत लग जाती है। जबकि, विशेषज्ञ की सलाह से सही डोज में दवा लेना सुरक्षित और असरदार होता है।
मानसिक बीमारी के लक्षण
- लगातार उदासी या चिंता
- अकेलापन महसूस करना
- बार-बार खुद को नुकसान पहुंचाने का विचार आना
- रोजमर्रा के कामों में मन न लगना
- नींद में कमी या अधिकता
- चिड़चिड़ापन
मानसिक बीमारी के कारण
- आनुवंशिकता
- बचपन का मानसिक या शारीरिक शोषण
- नौकरी या पढ़ाई का तनाव
- किसी करीबी का निधन
- हार्मोनल बदलाव
- सामाजिक दबाव
भारतीय समाज में मानसिक स्वास्थ्य पर मौन क्यों?
- सामाजिक कलंक: मानसिक बीमारी को लेकर समाज में शर्मिंदगी का भाव है। लोग खुलकर बात करने से डरते हैं।
- जानकारी की कमी: स्कूल, कॉलेज और परिवार में मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा नहीं होती।
- चिकित्सकीय संसाधनों की कमी: भारत में प्रति लाख जनसंख्या पर 0.75 मनोचिकित्सक हैं।
- आर्थिक समस्याएं: प्राइवेट अस्पतालों में इलाज महंगा है। सरकारी अस्पतालों में भीड़ होने के कारण वहां उपलब्ध मुफ्त या कम कीमत के इलाज को अधिकतर लोग दरकिनार कर देते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता कैसे बढ़ाएं?
- परिवार में खुलकर बात करें।
- स्कूल और कॉलेज में वर्कशॉप कराएं।
- सरकारी स्तर पर हेल्पलाइन और मुफ्त काउंसलिंग सुविधा बढ़ाएं।
- सोशल मीडिया पर जागरूकता अभियान चलाएं।
- सही जानकारी वाली वेबसाइट्स और यूट्यूब चैनल्स से जुड़ें।
मानसिक बीमारी का इलाज
- काउंसलिंग: बात करके इलाज का सबसे प्रभावी तरीका।
- साइकोथैरेपी: व्यवहार सुधारने की चिकित्सा।
- दवाइयां: मनोचिकित्सक की सलाह से।
- योग और ध्यान: मानसिक शांति के लिए।
- समर्थन समूह: ऐसे लोगों के साथ बातचीत जो इसी दौर से गुज़र रहे हों।
निष्कर्ष
मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भारतीय समाज में फैली गलतफहमियां कई जिंदगियां बर्बाद कर रही हैं। अब समय है कि हम इन भ्रांतियों को तोड़ें और मानसिक स्वास्थ्य को सामान्य बीमारी की तरह स्वीकारें। जिस तरह बुखार, डायबिटीज, और हृदय रोग का इलाज होता है, वैसे ही मानसिक समस्याओं का भी इलाज संभव है।
अगर हम सही जानकारी, सहयोग और समझदारी के साथ आगे बढ़ें तो मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हर समस्या को दूर किया जा सकता है।
सुझाव:
अगर आप या आपका कोई परिचित मानसिक समस्या से जूझ रहा है, तो बिना झिझक मनोचिकित्सक या काउंसलर से संपर्क करें।

नरेन्द्र सिंह इस वेबसाइट के संस्थापक हैं। उन्हें होटल इंडस्ट्री का अच्छा खासा अनुभव है। लोगो को अपने लेख द्वारा समाज में चल रही बुराइयों से सजग करने और उससे बचने के लिए अपने विचार व्यक्त करते हैं। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने होटल इंडस्ट्री के अपने 18 साल के करियर को स्विच कर अपने पसंदीदा और रूचि के करियर मीडिया में प्रवेश किया है। वह न केवल सामाजिक बुराइयों के खिलाफ सजग करते हैं, अपितु सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का प्रयोग कर सामाजिक बुराइयों को उजागर कर, दोषियों के विरूद्ध कार्यवाही के लिए संबंधित विभाग को सूचित करते हैं।