जेंडर डिस्फोरिया क्या है?

यह विषय हमारे समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण और प्रेरक है। समाज को जागरूक करना होगा। समाज भी तभी जागरूक होगा जब तथ्यों को सही ढंग से समाज के सामने रखा जाएगा।


किसी व्यक्ति के लिंग (जन्म के समय) और उसके या उसकी परिपक्व होने पर आंतरिक सेक्स की अनुभूति के बीच का अंतर जेंडर डिस्फोरिया है। एक व्यक्ति गलत शरीर में पैदा होता है, व्यक्ति जन्म के समय महिला या पुरुष होता है, जैसे-जैसे उनकी समझ बढ़ती है, उन्हें पता चलता है कि वे अपने लिंग के बारे में जो महसूस कर रहे हैं वह उनके जन्म के समय के लिंग के विपरीत है। जिससे उन्हें अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। वे अपनी समस्या अपने परिवार को बताने से भी डरते हैं।

यहाँ तक की कई उच्च शिक्षित और धनी परिवार भी अपने बच्चों को नहीं समझ पाते हैं, वे समाज में नकली प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए बच्चों को उनकी हालत में छोड़ देते हैं।


हम सामान्य हैं, इसके बावजूद हमें अपना जीवन जीने के लिए कई संघर्षों से गुजरना पड़ता है। मगर उन्हें जीवन जीने के लिए बहुत ही अधिक संघर्ष करना पड़ता है। ज्यादातर समय उन्हें डिप्रेशन का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका जीवन और भी मुश्किल हो जाता है।


अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन(American Psychiatric Association) के अनुसार यह कोई मानसिक रोग नहीं है। भारत समेत ज्यादातर देश ऐसे लोगों के अधिकारों के लिए आगे आए हैं, उन्हें मेडिकल साइंस की मदद से लिंग बदलने का अधिकार है।


चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, जेंडर रिअसाइनमेंट सर्जरी (सेक्स चेंज सर्जरी) के लिए मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, एंडोक्रिनोलॉजिस्ट (हार्मोन विशेषज्ञ) से लेकर सर्जन तक की एक प्रक्रिया है।

सबसे पहले, रोगी(Patient) को एक मनोचिकित्सक से परामर्श करना होगा, संतुष्ट होने पर, मनोचिकित्सक रोगी के मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन के लिए एक मनोवैज्ञानिक की सिफारिश करेंगे। जेंडर डिस्फोरिया की पुष्टि होने पर मनोवैज्ञानिक रोगी को हार्मोन थेरेपी के लिए एंडोक्रिनोलॉजिस्ट (हार्मोन विशेषज्ञ) को रिपोर्ट करेंगे। एंडोक्रिनोलॉजिस्ट के अनुसार, रोगी को उनके द्वारा निर्धारित हार्मोन की खुराक लेनी होगी, इसमें कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए। रोगी को एंडोक्रिनोलॉजिस्ट के 12 महीने के हार्मोनल थेरेपी के आधार पर जेंडर रिअसाइनमेंट सर्जरी के लिए मनोचिकित्सक से एनओसी(NOC) मिलेगी। रोगी को उपरोक्त रिपोर्ट के आधार पर दूसरे मनोचिकित्सक से एक और एनओसी लेनी चाहिए। रोगी दो मनोचिकित्सकों की एनओसी के आधार पर एक सर्जन से सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी के लिए योग्य हो जाता है।


सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी तक की प्रक्रिया बहुत महंगी है, रोगी कड़ी मेहनत करता है और अपनी सर्जरी के लिए पैसे कमाता है, फिर भी अधिकांश परिवार उसे स्वीकार नहीं करते हैं और समाज में नकली प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए उन्हें अकेला छोड़ देते हैं।


जो रोगी गरीब है, वह न तो अपने परिवार को समस्या बता सकता है और न ही सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी के लिए पैसे कमा सकता है। उनका जीवन बहुत दुखदायी होता है। ऐसे लोगों की मदद के लिए सरकार को आगे आकर आर्थिक मदद देनी चाहिए, समाज में जागरूकता भी फैलानी चाहिए।

बहुत सारे संगठन हैं जो LGBTQ समुदाय के अधिकारों के लिए काम कर रहे हैं।


राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण(NALSA) बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया(UOI) और अन्य(Others) के मामले में रिट याचिका (सिविल) संख्या 400 ऑफ़ 2012 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार I माननीय उच्चतम न्यायालय ने उक्त निर्णय के पैरा 99 में कहा है, ”यदि लोकतंत्र व्यक्ति के व्यक्तित्व और गरिमा की मान्यता पर आधारित है, ​तो हमें एक इंसान के अपने लिंग को चुनने के अधिकार को मान्यता देना होगा जो उनके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है और आत्मनिर्णय गरिमा और स्वतंत्रता के सबसे बुनियादी पहलुओं में से एक है।” (“if democracy is based on the recognition of the individuality and dignity of man, as a fortiori we have to recognize the right of a human being to choose his sex/gender identity which is integral to his/her personality and is one of the most basic aspect of self-determination dignity and freedom.”)


जीवन में खुश रहने के लिए डिप्रेशन से दूर रहना बहुत जरूरी है, कृपया मेरा पिछला ब्लॉग “डिप्रेशन से कैसे निपटें” पढ़ें I

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