CBSE रिजल्ट का समय बच्चों और माता-पिता दोनों के लिए तनाव भरा होता है। बच्चों के लिए यह उनके परिश्रम का परिणाम होता है, वहीं माता-पिता के लिए यह गर्व और चिंता का मिश्रण होता है। भारत में अकादमिक प्रदर्शन को करियर और सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाता है, जिससे बच्चों पर अतिरिक्त दबाव बनता है। लेकिन एक जिम्मेदार और संवेदनशील माता-पिता होने के नाते सबसे ज़रूरी बात बच्चों के नंबर नहीं, बल्कि उनका आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य है।

इस लेख में हम जानेंगे कि रिजल्ट के समय माता-पिता को बच्चों से कैसा व्यवहार और संवाद करना चाहिए, किन गलतियों से बचना चाहिए और बच्चों को कैसे प्रोत्साहित करना चाहिए।
रिजल्ट के समय बच्चों के लिए यह विषय संवेदनशील क्यों होता है?
बच्चों के लिए परीक्षा के नतीजे कई तरह की भावनाओं का कारण बनते हैं — खुशी, गर्व, निराशा और डर। सामाजिक अपेक्षाएं, तुलना और माता-पिता का दबाव इन भावनाओं को और भी बढ़ा देता है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में किशोरों के तनाव का बड़ा कारण परीक्षा परिणाम और माता-पिता की प्रतिक्रिया है।
रिजल्ट के समय माता-पिता की भूमिका
माता-पिता की प्रतिक्रिया और शब्द बच्चे के आत्मविश्वास को या तो मजबूत कर सकते हैं या फिर उन्हें मानसिक रूप से तोड़ सकते हैं। रिजल्ट पर बातचीत का तरीका बहुत सोच-समझकर अपनाना चाहिए।
वे गलतियां जो माता-पिता को नहीं करनी चाहिए
- दूसरों से तुलना: “शर्मा जी के बेटे ने 90% लाया, तुम क्यों नहीं?” जैसा कहना बच्चों के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाता है।
- गुस्सा या निराशा जाहिर करना: नकारात्मक प्रतिक्रिया से बच्चों में डर और चिंता बढ़ती है।
- धमकी देना: “अगली बार ऐसे नंबर आए तो देख लेना” जैसी बातें नुकसानदायक हैं।
- नंबर को जीवन का मापदंड बनाना: नंबर कभी भी बच्चे की पहचान या काबिलियत का प्रमाण नहीं होते।
- उनकी भावनाओं को नजरअंदाज करना: “इतना क्या सोचना?” जैसी बातें बच्चों को और दुखी करती हैं।
कैसे करें बच्चों से सकारात्मक बातचीत
- संवेदनशीलता से बात शुरू करें: उनकी खुशी या दुख को स्वीकार करें।
- परिश्रम की सराहना करें: सिर्फ नंबर नहीं, कोशिश को भी महत्व दें।
- सुरक्षित माहौल बनाएं: बच्चों को बिना डरे अपनी भावनाएं साझा करने दें।
- सकारात्मक शब्दों का उपयोग करें: “मुझे तुम पर गर्व है, तुमने अच्छा प्रयास किया।”
- अपने अनुभव बताएं: अपने जीवन की कठिनाइयों और सीखें साझा करें।
अगर नतीजे उम्मीद के अनुसार न आएं तो क्या कहें
- “नंबर जिंदगी का आखिरी सच नहीं है। ईमानदारी और मेहनत ज्यादा अहमियत रखती है।”
- “दुखी होना स्वाभाविक है, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं।”
- “हर बच्चे की अपनी खासियत होती है। हम मिलकर उसे ढूंढेंगे।”
स्वस्थ नजरिया विकसित करें
बच्चों को समझाएं कि परीक्षा जिंदगी का एक हिस्सा है। उन लोगों के उदाहरण दें जिन्होंने पढ़ाई में औसत रहने के बाद भी जिंदगी में बड़ा मुकाम हासिल किया। बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ उनकी रुचियों और शौकों के लिए भी प्रेरित करें।
CBSE की आधिकारिक सहायता सुविधाएं
CBSE द्वारा उपलब्ध हेल्पलाइन नंबर, ऑनलाइन काउंसलिंग और मोटिवेशनल सेशन की जानकारी दें।
भावनात्मक सहारा क्यों ज़रूरी है
एक बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य नंबर से कहीं ज्यादा अहम है। आंकड़ों के मुताबिक परीक्षा के समय माता-पिता का दबाव बच्चों के तनाव का एक बड़ा कारण है। एक सहायक और समझदार माहौल बच्चों को आत्मविश्वासी और मजबूत बनाता है।
अंतिम शब्द
एक बच्चे का भविष्य कभी भी नंबर से तय नहीं होता। असली परीक्षा तो जिंदगी है, जहाँ हिम्मत, ईमानदारी, दया और लगन सबसे ज्यादा मायने रखते हैं।

नरेन्द्र सिंह इस वेबसाइट के संस्थापक हैं। उन्हें होटल इंडस्ट्री का अच्छा खासा अनुभव है। लोगो को अपने लेख द्वारा समाज में चल रही बुराइयों से सजग करने और उससे बचने के लिए अपने विचार व्यक्त करते हैं। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने होटल इंडस्ट्री के अपने 18 साल के करियर को स्विच कर अपने पसंदीदा और रूचि के करियर मीडिया में प्रवेश किया है। वह न केवल सामाजिक बुराइयों के खिलाफ सजग करते हैं, अपितु सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का प्रयोग कर सामाजिक बुराइयों को उजागर कर, दोषियों के विरूद्ध कार्यवाही के लिए संबंधित विभाग को सूचित करते हैं।
