आंतरायिक उपवास यानी इंटरमिटेंट फास्टिंग (Intermittent Fasting) आजकल बहुत चर्चा में है। लोग इसे सिर्फ एक डाइट के रूप में नहीं बल्कि एक लाइफस्टाइल बदलाव के रूप में भी अपना रहे हैं। कई सेलेब्स, फिटनेस एक्सपर्ट्स और हेल्थ प्रोफेशनल्स इसके फायदे बताते हैं, लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या ये सच में स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है या सिर्फ एक ट्रेंड? इस लेख में हम इंटरमिटेंट फास्टिंग के विज्ञान, फायदे, नुकसान और इसके वैश्विक व भारतीय परिदृश्य पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

इंटरमिटेंट फास्टिंग क्या है?
इंटरमिटेंट फास्टिंग भोजन और उपवास के बीच नियमित अंतराल रखना है। इसमें व्यक्ति कुछ घंटों के लिए भोजन नहीं करता, जिससे शरीर अपने जमा वसा को ऊर्जा में बदल सके। यह डाइट नहीं बल्कि भोजन का एक पैटर्न है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग के मुख्य प्रकार
- 16/8 मेथड – 16 घंटे उपवास और 8 घंटे भोजन करना।
- 5:2 डाइट – हफ्ते के किसी भी दो दिन, सीमित मात्रा में कैलोरी लेना और बाकी दिनों में सामान्य आहार लेना।
- Eat-Stop-Eat – हर सप्ताह एक या दो बार पूरा 24 घंटे कुछ न खाकर उपवास करना।
- Alternate-Day Fasting – एक दिन नियमित भोजन और अगले दिन उपवास, ये चक्र लगातार चलता है।
- OMAD – पूरे दिन में केवल एक बार संतुलित भोजन करना, बाकी समय सिर्फ पानी या बिना कैलोरी वाले पेय लेना।
इंटरमिटेंट फास्टिंग कैसे काम करता है?
उपवास के दौरान इंसुलिन का स्तर कम हो जाता है, जिससे शरीर जमा वसा को ऊर्जा में बदलने लगता है। साथ ही ऑटोफैगी (कोशिकाओं की सफाई) बढ़ती है, जो कोशिकाओं को स्वस्थ रखती है और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करती है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग के फायदे
- वजन घटाने में मदद: कैलोरी की कमी और फैट बर्निंग बढ़ती है।
- इंटरमिटेंट फास्टिंग से इंसुलिन संवेदनशीलता बढ़ती है, जिससे शरीर ब्लड शुगर को बेहतर ढंग से नियंत्रित कर पाता है।
- मानसिक स्पष्टता और फोकस: दिमाग़ तेज़ काम करता है।
- हृदय स्वास्थ्य: ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है।
- एंटी-एजिंग: कोशिकाओं की सफाई और मरम्मत में मदद।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता: कैंसर, अल्जाइमर जैसे रोगों का खतरा कम हो सकता है।
जोखिम और सावधानियां
- गर्भवती महिलाएं और बच्चे इसे न अपनाएं।
- डायबिटीज़ मरीज डॉक्टर की सलाह के बिना न करें।
- ज्यादा समय तक उपवास से कमजोरी हो सकती है।
- ईटिंग डिसऑर्डर वाले व्यक्तियों के लिए यह डाइटिंग पद्धति जोखिमभरी हो सकती है, इसलिए इसे अपनाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह ज़रूरी है।
भारत में इंटरमिटेंट फास्टिंग का चलन
भारत में पारंपरिक उपवास की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। आज के युवा इसे आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़कर अपनाने लगे हैं। योग और आयुर्वेद के सिद्धांत इसे समर्थन देते हैं।
इंटरमिटेंट फास्टिंग पर वैज्ञानिक शोध
कई रिसर्च से पता चला है कि यह उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर सकता है, मेटाबॉलिक हेल्थ सुधार सकता है और वजन कम करने में मदद करता है।
आम गलतफहमियां
- उपवास का मतलब केवल भूखा रहना नहीं होता — इसका उद्देश्य शरीर को पाचन से आराम देना, कोशिकाओं की मरम्मत को बढ़ावा देना और संपूर्ण स्वास्थ्य सुधारना होता है।
- इंटरमिटेंट फास्टिंग केवल वजन घटाने के लिए नहीं अपनाया जाता — यह ब्लड शुगर नियंत्रण, मानसिक स्पष्टता, और लंबी उम्र जैसे स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान कर सकता है।
- फास्टिंग के दौरान, भोजन की अवधि में शरीर को सभी जरूरी पोषक तत्व — जैसे प्रोटीन, विटामिन, मिनरल और फाइबर — संतुलित रूप से मिलना चाहिए, ताकि पोषण की कोई कमी न हो।
सही तरीके से शुरू कैसे करें?
- शुरुआत में 12-14 घंटे का उपवास करें।
- पानी और हर्बल चाय पीते रहें।
- हल्का व्यायाम करें, भारी व्यायाम से बचें।
- पौष्टिक भोजन लें।
- ट्रैकिंग ऐप्स से प्रगति देखें।
निष्कर्ष
इंटरमिटेंट फास्टिंग केवल एक डाइट नहीं, बल्कि एक स्वस्थ जीवनशैली है। इसे सही तरीके से अपनाकर आप न केवल वजन कम कर सकते हैं, बल्कि अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बना सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: क्या इंटरमिटेंट फास्टिंग हर किसी के लिए सही है?
उत्तर: नहीं, कुछ लोगों के लिए यह उपयुक्त नहीं होता।
प्रश्न 2: क्या मैं इसे रोज़ाना कर सकता हूँ?
उत्तर: धीरे-धीरे आदत डालें, शुरू में सप्ताह में कुछ दिन।
प्रश्न 3: क्या इसमें वजन फिर से बढ़ सकता है?
उत्तर: अगर भोजन संतुलित नहीं होगा तो हाँ, वजन वापस बढ़ सकता है।
क्या आपने इंटरमिटेंट फास्टिंग ट्राई किया है? अपने अनुभव कमेंट में जरूर बताएं। और ऐसे हेल्थ टिप्स के लिए हमारी वेबसाइट पर नियमित आते रहें।