ऑनलाइन गेमिंग की गिरफ्त में मासूम बचपन — क्या आप भी कर रहे हैं अनदेखी?

परिचय

डिजिटल युग ने बच्चों की दिनचर्या और मनोरंजन के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है। कभी बच्चे गलियों में दौड़ते, क्रिकेट और कबड्डी खेलते, पेड़ पर चढ़ते या कंचे खेलते नजर आते थे। लेकिन अब मोबाइल, कंप्यूटर और टैबलेट की स्क्रीन ने उनकी दुनिया को एक सीमित फ्रेम में कैद कर दिया है। इनमें भी सबसे बड़ा आकर्षण बन चुकी है “ऑनलाइन गेमिंग”। PUBG, Free Fire जैसे गेम बच्चों की दिनचर्या में इस कदर शामिल हो चुके हैं कि पढ़ाई, खेलकूद, खानपान और सामाजिक मेलजोल तक पर इसका सीधा असर पड़ने लगा है।

ऑनलाइन गेमिंग की गिरफ्त में मासूम बचपन — क्या आप भी कर रहे हैं अनदेखी?

गेमिंग की लत केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं रही। यह अब एक मनोवैज्ञानिक समस्या का रूप ले रही है। WHO (World Health Organization) ने 2018 में ‘Gaming Disorder’ को मानसिक स्वास्थ्य विकार घोषित किया। भारत में भी पिछले 5 वर्षों में बच्चों में ऑनलाइन गेमिंग की लत से जुड़े कई गंभीर मामले सामने आए हैं। आत्महत्या, हिंसक व्यवहार, चोरी, माता-पिता से झगड़े जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं। यह लेख इसी गंभीर विषय की गहराई से पड़ताल करता है।

गेमिंग लत के लक्षण (Signs of Gaming Addiction)

  1. समय की अति: बच्चे घंटों-घंटों तक मोबाइल या लैपटॉप पर गेम खेलते रहते हैं। रात का जागना और दिन में थकान रहना आम बात हो जाती है।
  2. पढ़ाई में गिरावट: पढ़ाई से मन हट जाना, होमवर्क न करना और परीक्षा में अनुत्तीर्ण होना।
  3. सामाजिक अलगाव: दोस्त, परिवार से दूरी बनाना, कमरे में बंद रहना।
  4. चिड़चिड़ापन व गुस्सा: गेम न खेलने देने पर गुस्सा करना, माता-पिता पर चिल्लाना।
  5. आंखों में जलन व सिरदर्द: लगातार स्क्रीन देखने से शारीरिक समस्याएं।
  6. नींद की कमी: रात-भर गेम खेलने से दिन में नींद आना।

मानसिक प्रभाव (Psychological Effects)

ऑनलाइन गेमिंग की लत बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को गहरा नुकसान पहुंचाती है। WHO ने इसे ‘Gaming Disorder’ कहा है। गेमिंग की लत से बच्चों में निम्न मानसिक समस्याएं पनप सकती हैं:

  • तनाव व चिंता: गेम में हार या ज्यादा समय खेलने पर तनाव।
  • आक्रामकता: हिंसक गेम खेलने से बच्चों का स्वभाव आक्रामक हो जाता है।
  • अवसाद: हारने पर निराशा, अकेलापन, आत्मघात तक के विचार।
  • ध्यान में कमी: पढ़ाई या किसी भी रचनात्मक कार्य में एकाग्रता खत्म।

शारीरिक प्रभाव (Physical Effects)

  • आंखों की समस्या: मोबाइल व लैपटॉप स्क्रीन पर घंटों बिताने से आंखों में जलन, सूखापन और चश्मा लगने की समस्या।
  • मोटापा: शारीरिक गतिविधियां कम होने से वजन बढ़ना।
  • कमजोर पाचन: गेमिंग के चक्कर में भोजन समय पर न करना।
  • नींद में कमी: देर रात तक गेम खेलने की वजह से नींद पूरी न होना।

सामाजिक प्रभाव (Social Impact)

बच्चे समाज और परिवार से कटने लगते हैं। मित्र मंडली सीमित हो जाती है। स्कूल में व्यवहार प्रभावित होता है। कई बार चोरी, झूठ बोलना, गाली-गलौज जैसी आदतें भी पनप जाती हैं। कुछ बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति, आत्महत्या के प्रयास और आपराधिक मानसिकता भी देखी गई है।

माता-पिता की भूमिका (Parents’ Role)

  1. स्क्रीन टाइम तय करें: बच्चों के मोबाइल, कंप्यूटर व गेमिंग समय को नियंत्रित करें।
  2. खुले में खेल के लिए प्रोत्साहित करें: बच्चों को क्रिकेट, बैडमिंटन, साइकिलिंग के लिए प्रेरित करें।
  3. सकारात्मक संवाद: बच्चों से उनकी समस्याएं व भावनाएं साझा करें।
  4. डिजिटल डिटॉक्स: परिवार सहित सप्ताह में एक दिन मोबाइल व टीवी बंद रखें।
  5. प्रेरणादायक गतिविधियां: चित्रकला, संगीत, नाटक, योग व पुस्तक पठन के लिए प्रेरित करें।

सरकार व समाज की जिम्मेदारी (Social and Government Responsibility)

सरकार को बच्चों के लिए ऑनलाइन गेमिंग पर कुछ सख्त नियम बनाने चाहिए। हिंसक और अश्लील कंटेंट वाले गेम्स को प्रतिबंधित करना चाहिए। स्कूलों में डिजिटल लत पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। एनजीओ और अभिभावक संघ मिलकर जागरूकता फैलाएं।

समाधान और उपचार (Solution and Treatment)

यदि बच्चा गंभीर रूप से गेमिंग लत का शिकार हो जाए तो:

  • मनोचिकित्सक की सलाह लें।
  • काउंसलिंग कराएं।
  • डिजिटल डिटॉक्स प्रोग्राम में भेजें।
  • ऑनलाइन लत से उबरने वाली सफल कहानियों से प्रेरित करें।

निष्कर्ष

ऑनलाइन गेमिंग एक मनोरंजन का माध्यम है, परंतु अत्यधिक उपयोग बच्चों को मानसिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से विकलांग बना सकता है। माता-पिता, समाज और सरकार को मिलकर बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए इस लत पर अंकुश लगाना होगा। समय रहते रोकथाम ही समाधान है।

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